घोंसला ..... ठिकाना ममत्व का, आदर्श कर्तृत्व का।

एक डाल पर देखा, 
चिड़िया ने घोंसला बनाया
बड़े प्यार से उसने
अपना आशियाना बनाया।

ऐसा आशियाना जो है
बड़ा ही अनोखा
जिसका कोई कानूनी दस्तावेज  नहीं
ना ही जिसने अपने उतराधिकारी को देखा।

ना ही बंटवारे की फिक्र
ना किसी सीमा का जिक्र।
सिर्फ और सिर्फ कर्तव्य का भान,
तिनकों से सजाया, अपना स्वाभिमान।

हर तिनका है सजा, 
अपनत्व की खुशबू से
जो होगा साक्ष्य, 
सृजन के सुखद रूप से।

क्यों सीखता नही मानव
इन परिंदों के कर्तृत्व से
नही बनाकर देते जो,
संतति हेतु  आशियाना ममत्व से।

हर परिंदे को गढ़ना है आशियाना स्वयं का।
नही कोई स्थान जिसमें,स्वार्थ और अहम का।
मेहनतकश ये पक्षी अब लुप्तप्राय हैं,
क्यों न सजे मानवता अब, 
यही इन पंक्तियों का अभिप्राय है।











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