अंत होलिका, रंग होली का।
बेरंग पतझड़ में, चटकीले पलाश
जैसे निराश मन को मिल जाय आस।
रंग टेसू के , सुकून देते हैं,पतझड़ में
जैसे मुस्कुराए बचपन का मन
भव सागर रूपी बीहड़ में।
कितना भी रंग भर लो जिंदगी में
आधुनिकता और तकनीकी से
रंगीन तो वो होगी, हमारे
पर्वों और संस्कृति से।
आया फिर त्योहार होली का,
रंग, पिचकारी, गुलाल और पूरन पोली का
उत्सव, विजेता प्रह्लाद की "भक्ति" का,
अहंकार विलीन हुआ संग "होलिका।"
आज की होली में फाग कहां
मस्ती में झूमे मन,वो राग कहां
गुम हो गया शरारत से भरा रंगीन गुब्बारा
आधुनिक होली में अब वो रंग कहां।
आओ ऐसी मनाएं होली,
कि जीवन में अब कोई मलाल न हो।
आपसी सामंजस्य के रंग में रंग जाएं हम
मन मुटाव से रंगा कोई गुलाल न हो।
आओ पुनः सजाएं इंद्रधनुष सा अपना जीवन
डीजे की धुन में नही थिरकें,अपितु
गुंजायमान हो फाग गायन।
गुझिया की मिठास में खो जाएं सारी अनबन।
होली की शुभकामनाएं आपको, ह्रदय तल से
आपको नमन।
शुभ होली।
रुचि अमित झा
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