गीता
तुम गीता हो, तुम कविता हो
मानव का जीवनाधार, तुम्ही तो जीव सरिता हो।
श्रीमुख से जन्मी ,लोक को समर्पित
तुम्ही से मानव है इस भवसागर में
सत्य मार्ग का पथिक होने को प्रेरित
हर संशय का समाधान, तुम शब्दों से जीविता हो
तुम गीता हो, तुम कविता हो।
न्याय की साक्ष्य हो, सतपथ से विचलित
मानव का, इस कलयुग में तुम ही तो साथ हो
श्लोकों में बांधती, पग पग की राह को
मानव हितकारी तुम,सत्पुरुष की प्रणेता हो
तुम गीता हो,तुम कविता हो।
कर्मयोगी की साधना हो
निष्फल कर्म की प्रेरणा हो
तुम सूक्ष्म भी और व्याप्त भी
मधुसूदन से अभिव्यक्त,रणक्षेत्र में
इस जगत की शुभता हो
तुम गीता हो, तुम कविता हो।
हां
तुम गीता हो, तुम कविता हो
मानव जीवनाधार, तुम्ही तो जीव सरिता हो।
तुम गीता हो
तुम गीता हो।
रुचि 🙏
Comments
Post a Comment