नारीत्व को स्वीकार कर!

नारी, तू नारीत्व को स्वीकार कर
हर स्वप्न को साकार कर, तू
नारीत्व को स्वीकार कर।

तुझमे नही है रिक्तता
      तुझमे सृजन की पूर्णता
पीढियों की रचनाकार तू
      तू साकार कल्पनाकार है।
हर स्वप्न....

तू ही शिवा तू चंचला
    तू विद्या है ,तू वसुंधरा
विश्व की तू सृष्टिकर्ता,
     तोड़ नयन उसके यहाँ, जो
तुझपर है कुदृष्टि करता
न कर प्रतीक्षा गैर की, तू,
  स्वयं का सम्मान कर
हर स्वप्न को ........

तू प्रथम गुरु, तू कुलवधू,
     जगत को सींचता तेरा लहू।
एक कुल की ही नहीं, तू,
       दो कुलों की लज़्ज़ा है।
श्रृंगार तुझ पर है सजे, और 
     तू जगत की सज्जा है
सज स्वयं, और विश्व का श्रृंगार कर
हर स्वप्न को .....

देवों की है तू श्रेष्ठ रचना
    रख सुरक्षित मान अपना
नारी है तू, हर नारी का सम्मान कर
हाथों में सबका हाथ थाम तू
   प्रगती पथ पर आरोह कर
हर स्वप्न को.....

न भूलना "स्वयं"को, किंतु
    प्रतिपल रचनाकार बन
तुझमे छिपी है सृष्टिकर्ता की
   शक्ति अनुपम और गहन
विनाश तेरे हाथ है, तुझमे  छिपी तलवार है
कुपंथ के राही पर तु ,ममतामयी वार कर
न बदले अपनी राह वो, तो कुमार्गी का संहार कर।

हर स्वप्न को ......




RAJ

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