वसंत पंचमी

माह हो माघ का, तिथि हो शुक्ल पंचमी
तब आता है उत्सव,  वसंत पंचमी।

दिनविशेष वो, शब्दों में न  वर्णित न हो
अवतरण दिन है, माँ वीणा पाणी का।
मिला था उपहार मानवजाति को
शब्दो की शक्ति से,  स्व-अभिव्यक्ति का।
यही है उत्सव ,वसंत पंचमी का।

पीले वस्त्र, गायन,वादन, और
सर्वोपरी है मा शारदा का वंदन।
इस उत्सव का उत्साह है कितना अलग
शालीनता से भरी  पूजा-थाल, 
और नमन माँ शारदा का
बिलकुल अलग है ये उत्सव वसंत पंचमी का। 

वसंत पंचमी लाती है वसंत
सर्दियों के कदमों का लड़खड़ाकर लौटना है वसन्त
सुनहली धूप का अपने तेज को हासिल करना है वसंत.
कविवृन्द का प्यारा है वसंत
ऋतुओं का राजा है वसंत, 
शुभ मुहूर्त है वसंत, आद्य लकड़ी होलिका
यही है उत्सव वसंत पंचमी का।

वीणा वादिनी की गूंज से
अबोल किताबों के बोलते शब्दों से
ज्ञान का उपहार देती है हंसवाहिनी
जलज़ थामे अपने निःस्वार्थ करों में
क्या अर्पण तुम्हें करें हम,बना रहे आशीष तुम्हारा
यही मांगता है मन, क्योंकि उत्सव है वसंत पंचमी का।

इस वसंत
बस अंत करो माँ, विकट संकट का
विमुख हो रही पीढ़ी, बदलने लगा स्वरूप ज्ञान का
किताबें बन गईं e बुक, और  चुनौति खडी है
संस्कारो के सम्मुख
युग बना तकनीकी है, मानवता हो गई 
सन्मार्ग से विमुख
वस अब अंत हो विकरालता का
गूंजे सिर्फ उत्साह और महके सुगंध सत्कार्य   का
बना रहे सौंदर्य बसंत पंचमी के त्योहार का।




RAJ.











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