दीवाली या..... .. ।
दीवाली को
कुछ नज़दीक से देखा मैंने।
न जाने प्रकाश में
कैसा तमस देखा मैंने।
महंगाई का हवाला देते
निर्धनों को बाजार में भीड़ बढ़ाते देखा
सामान्य होते बाजार में
कुछ असामान्य सा देखा मैंने
दीवाली को कुछ नज़दीक से देखा मैंने।
सड़को पर बिकी मिठाईयां,
चिवड़ा और चकलियाँ,
न जाने क्यों स्वादिष्ट व्यंजनों को
निःस्वाद होते देखा मैंने।
दीवाली को कुछ नज़दीक से देखा मैंने।
महामारी ने छीन लिया बहुतों के अपनों को,
नीर भरे नैनों में नीरस उल्लास देखा
बुझे कई घरों के दिये
पर पुनः दीप जलते देखा मैंने।
दीवाली को कुछ नज़दीक से देखा मैंने।
दोपहर तक अनमोल बिक रहे फूलों को
कचरे के ढेर में बदलते देखा,
न जाने कैसी चकाचौंध में
जीवन को अपना सुध-बुध खोते देखा मैंने,
दीवाली को कुछ नज़दीक से देखा मैंने।
घर की रौशनी छोड़कर,
नशे के अंधेरे में लोगों को गुम होते देखा
एक स्वार्थी के पीछे सारे परिवार के
सपनों को चूर होते देखा मैंने।
दीवाली को कुछ नज़दीक से देखा मैंने।
गाड़ियों की रफ्तार के साथ
किशोरों को, लक्ष्य विहीन,
दीपों की रोशनी से,
अमावस के तमस में समाते देखा,
दीवाली को कुछ नज़दीक से देखा मैंने।
न जाने प्रकाश में कैसा तमस देखा मैंने।
🙏
रुचि
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