पत्र......एक कागज का टुकड़ा
पत्र क्या है,
एक कागज का टुकड़ा ही तो है।
समेटे खुद में शब्दों का झुरमुट ही
जिनमे छिपी हैं भावनाएं
सुखद भी और दुखद भी
छीन लिया ई-मेल
और व्हाट्सएप्प ने
पत्रों के भीतर छिपे
अपनेपन के आभास को
पर कहाँ पा सकते हैं
ये टंकित शब्द
उस लिखित पत्र के
अहसास को
डाकिए की राह देखती
थी निगाहें
बन जाती थीं जीवन की
उत्स्फूर्त चाहें
पत्र लिखा करती थी माँ
अपनी ससुराली बिटिया को
पहुचानें अपना लाड़-दुलार
बिटिया को भी रहता था
नैहर के पत्रों का इंतज़ार,
बहने लिखा करती थी
स्नेह भरा पत्र,
जब आता था
रक्षाबंधन का त्योहार।
आज के युग मे लोगों की
फोन पर बातें हो जाया करती है
और नजदीकियां, दूर की
दूर ही रह जाया करती हैं
कहीं नन्हे मेहमान का आगमन हो
या किसी का देवलोक गमन
औपचारिक हो या अनौपचारिक
हमारे जीवन का अभिन्न अंग है पत्र।
यूँ तो होता है निशस्त्र पत्र
लेकिन इसकी शक्ति की कोई तुलना नही
अनेकों क्रांतियों के
उत्तरदायी बने हैं पत्र।
जिनका उल्लेख है इतिहास में, ये कोई
व्यर्थ कचरे का पन्ना नहीं।
मानव जीवन का आधार
होता है पत्र
मानव मन एकत्र
करता है पत्र।
बस, यही है पत्र,
कागज़ के एक टुकड़ा ही तो है
है न!
रुचि झा
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