गुल्लक
हर पल की यादों को खुद में संजोता,
आने वाले पलों के सुखमयी सपने संजोता,
हाँ मैं "गुल्लक" हूँ,घर के कोने में उपस्थित,
हर पल का साक्षी बन,स्वयं को सदस्य समझता।
मैं गुल्लक हुँ, घर का गुडलक बनता हुँ।
तिनके जोड़कर पंछी घर बनाते हैं
मैं घर के तिनको को संजो लेता हूँ,
कभी विपत्ति में मित्र बनकर,
कभी खुशहाली में सिक्के एकत्र कर,
मैं गुल्लक हूँ, घर का '"गुड लक" बनता हूँ।
मैं मुस्कुरा लेता हूं, जब परिवार हंस लेता है
मैं उदास हो जाता हूं, जब वो "कष्ट-पाश"में फंस जाता है,
कोई मुझे सिक्कों की जिम्मेदारी देता है,
कोई नोट संभालने योग्य समझता है,
मैं गुल्लक हूँ, घर का "गुडलक" बनता हूँ।
घर के बुजुर्ग मेरे सहारे से, छोटों को सिखाते
छोटे-छोटे पलों को जोड़कर जीवन-सुख लेना।
मैं उपेक्षित-सा, कोने में पड़ा रहता ,परन्तु,
आवश्यक होता है मेरा, हर सुख-दुख में भाग लेना।
मैं गुल्लक हूँ, घर का गुडलक बनता हुँ।
बिना कोई उम्मीद, बिना किसी अपेक्षा के
पूरा उत्तरदायित्व निभा जाता हूँ।
किसी की उम्मीदों को पूरा करने मैं
दिल से "टूट"जाया करता हूं।
मैं गुल्लक हूँ, घर का गूडलक बनता हूं।
टूटने से मेरे ,सपने होते किसी के पूरे,
सँजोये हुए सारे पलों से,
पुनः बुनते हैं सपनो के नए सिलसिले ।
मैं गुल्लक हूँ, घर गूडलक बनता हुँ।
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