नारी ...स्वयं परिपूर्ण स्वयं ही अधूरी
अब तो जानो खुद को नारी,
जानो स्वयं के महत्व को
कब तक नहीं पहचानोगी,
नारीत्व के अस्तित्व को
भिक्षुक नही तुम, जो मांगो,
भिक्षा अपने अधिकार की
स्वयं अनमोल रचना हो, तुम
इस सृष्टि के रचनाकार की
स्वयं को जानो, स्वयं को पहचानो
रचनाकार तुम स्वयं के संसार की।
निर्भीक होकर बढ़ो सम्मुख
बाट निहारता है गगन उन्मुक्त
छू लो असीमित ऊंचाइयां,
पर न भूलना, पर न भूलना
आकाश नही तुम्हारा बसेरा
घोंसले में लौटना है जहां
अपने ही ताक रहे है रास्ता तेरा।
ऊंचाइयों के लालच में कटी पतंग न बन जाना।
माँ बाप का अभिमान और दो कुलों की शान हो
भौतिकता में बहकर
इस सच्चाई से मुकर न जाना।
संसार की रचना में, अहम भूमिका तुम्हारी है
पर भूल न जाना कि हर रचना में छिपी एक नारी है
बेहद प्रगत बनो,लेकिन न भूलना मर्यादा को,
जो,बेड़ियां नही जिसे जग ने बांधी है
ये स्नेह है स्नेहिलों का,जो सुरक्षा तुम्हारी है।
तूम माँ, तुम बहन, तुम भाभी
कभी पत्नी कभी सखी
हर रूप में पुरुष के चित्त पर ,
चित्रांकन है तुम्हारा, फिर तुम्हे ही क्यों
मिलता निरादर सदा।
उत्तरदायित्व निभाओ खुद का
कंधा न ढूंढो इस जग को देखने को।
तुम स्वयं ही परिपूर्ण हो
अपना सम्मान खुद करने को।
R.A.J.
Comments
Post a Comment